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रहगुज़र
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मंगलवार, 12 अप्रैल 2016
मंगलवार, 1 दिसंबर 2015
उस्ताद साबिर खान का निधन
सारंगी की आत्मा का चले जाना
सारंगी सम्राट उस्ताद साबिर खान अब हमारे बीच नहीं रहे. उस्ताद साबिर खान का निधन सारंगी जगत के लिए सारंगी की आत्मा चले जाने जैसा है. उन्होंने ही सारंगी को सौ रंग अर्थात सौ रंगो के मधुर धुन वाला कहकर परभाषित क्या था. अपने उम्र के आखरी पड़ाव तक सारंगी की विरासत को संजोये रखना ही उनकी सारंगी की धुन थी, जो हर किसी को उनका मुरीद कर देती है.
उस्ताद साबिर खान को सत सत नमन/ भावभीनी श्रद्धांजलि/ अल्लाह हाफिज...
किशन कारीगर
(पत्रकार/कवि )
दिल्ली
सारंगी सम्राट उस्ताद साबिर खान अब हमारे बीच नहीं रहे. उस्ताद साबिर खान का निधन सारंगी जगत के लिए सारंगी की आत्मा चले जाने जैसा है. उन्होंने ही सारंगी को सौ रंग अर्थात सौ रंगो के मधुर धुन वाला कहकर परभाषित क्या था. अपने उम्र के आखरी पड़ाव तक सारंगी की विरासत को संजोये रखना ही उनकी सारंगी की धुन थी, जो हर किसी को उनका मुरीद कर देती है.
उस्ताद साबिर खान को सत सत नमन/ भावभीनी श्रद्धांजलि/ अल्लाह हाफिज...
किशन कारीगर
(पत्रकार/कवि )
दिल्ली
रविवार, 11 मार्च 2012
जिस्म के लुटेरे
जिस्म के लुटेरे
यहाँ भी वहाँ भी कुछ उधर भी
सफेदपोश चादर ओढ़े कुछ लोग
ये खरोंच डालेंगे तेरे जिस्म
हर कहीं बैठें हैं जिस्म के लुटेरे
क्या कर लोगे तुम इनका ?
गिरफ्तार हुए भी तो
ऊँची पहुँच है इनकी
ये जमानत पे छुट जायेंगे
सिर्फ अपने घर के बहू बेटियों की
इज्ज़त इन्हें नज़र आती है
दुसरे की तो रात दिन इन्हें
जिस्म ही दिखाई पड़ती है
अपनों की इज्ज़त करते
सरेआम दूसरों की जिस्म खरोंचते
एसा फर्क क्यूँ वे ही बताएं
पैसों की खातिर धर्म ईमान तक बेचते
क्या किसी मासूम किसी बेबश की
इज्ज़त आबरू ईमान की इज्ज़त नहि
अर्धनगन हुई जैसे दिखतें हो उसके जिस्म
उस अबला की आबरू को ढकना इनका फ़र्ज़ नहि ?
अय्याशी के नशे में मकबूल हुए
एसे लोगों को सराफत नहि भाता
पैसा ही इनके लिए सब कुछ है
हर कहीं इन्हें जिस्म ही नज़र आता
खुदा न करे कहीं एसा हो ?
तुम्हारें बहू बेटियों की आबरू लूट जाये
ऊँची पहुँच हो पैसो की ताकत होगी
मौके वारदात कुछ काम न आये
औरत तो औरत होती है ज़रा सोचो
अपने घर की हो या पराये घर की
आलिशान बंग्लें या झोपरपट्टी में रहनेवाली
इज्ज़त आबरू तो हर एक की है ?
"नादान " तुम किसके पास चीखोगे चिल्लाओगे
हबश की बधोशी में ये कुछ नहि सुनेगें
शराफत की चादर ओढ़े कुछ लोग
हर कहीं बैठें हैं जिस्म के लुटेरे
लेखक :- किशन कारीगर "नादान "
यहाँ भी वहाँ भी कुछ उधर भी
सफेदपोश चादर ओढ़े कुछ लोग
ये खरोंच डालेंगे तेरे जिस्म
हर कहीं बैठें हैं जिस्म के लुटेरे
क्या कर लोगे तुम इनका ?
गिरफ्तार हुए भी तो
ऊँची पहुँच है इनकी
ये जमानत पे छुट जायेंगे
सिर्फ अपने घर के बहू बेटियों की
इज्ज़त इन्हें नज़र आती है
दुसरे की तो रात दिन इन्हें
जिस्म ही दिखाई पड़ती है
अपनों की इज्ज़त करते
सरेआम दूसरों की जिस्म खरोंचते
एसा फर्क क्यूँ वे ही बताएं
पैसों की खातिर धर्म ईमान तक बेचते
क्या किसी मासूम किसी बेबश की
इज्ज़त आबरू ईमान की इज्ज़त नहि
अर्धनगन हुई जैसे दिखतें हो उसके जिस्म
उस अबला की आबरू को ढकना इनका फ़र्ज़ नहि ?
अय्याशी के नशे में मकबूल हुए
एसे लोगों को सराफत नहि भाता
पैसा ही इनके लिए सब कुछ है
हर कहीं इन्हें जिस्म ही नज़र आता
खुदा न करे कहीं एसा हो ?
तुम्हारें बहू बेटियों की आबरू लूट जाये
ऊँची पहुँच हो पैसो की ताकत होगी
मौके वारदात कुछ काम न आये
औरत तो औरत होती है ज़रा सोचो
अपने घर की हो या पराये घर की
आलिशान बंग्लें या झोपरपट्टी में रहनेवाली
इज्ज़त आबरू तो हर एक की है ?
"नादान " तुम किसके पास चीखोगे चिल्लाओगे
हबश की बधोशी में ये कुछ नहि सुनेगें
शराफत की चादर ओढ़े कुछ लोग
हर कहीं बैठें हैं जिस्म के लुटेरे
लेखक :- किशन कारीगर "नादान "
सोमवार, 14 फ़रवरी 2011
ग़ज़ल दिल किसी का दुखाया
ग़ज़ल दिल किसी का दुखाया
मैंने दिल किसी का दुखाया
मैने दिल किसी का दुखाया।
नादान था बहुत ही नटखट
नादानगी में उनको बहुत सताया।।
जिसने झुलाया था हमें
अपनी बाहों की झुलों मे।
जो बनके घोड़ा बिठाकर पीठ पर अपने
इंसा कोई हँसाया करते थे हमें।।
हर पल हँसाया था जिसने हमें
उसे हमने बहुत रूलाया।
नादानगी में मदहोश किशन
दिल किसी का दुखाया।।
रूठ जाता था कभी तो मा मुझे मनाती
बिठाकर गोद मे हमे खूब हँसती खिलखिलाती
रोता था जब कभी भी सुनाकर लोरियाँ
अपने आँचल तले हमे सुलाती।।
जो हँसाती थी हर पल मुझे
उसको हमने बहुत रूलाया
नादान ही तो था किशन
मैने दिल किसी का दुखाया।।
ग़ज़ल यादों में हम खो गए।
ग़ज़ल यादों में हम खो गए।
आप मुझे छोड़कर कहीं चले गए
सच्ची मुहब्बत में नादान कुछ पल रो लिए।
इठलाती.बलखाती आपकी हँसी पैग़ाम.ए.मुहब्बत बन गए
तस्वीर देखकर आपकी यादों में हम खो गए।
आपकी जुदाई में दिन कटता रहा
करता हूँ आपसे मुहब्बत सभी से मैं कहता रहा।
आपकी चाहत में न जाने हम क्या.क्या कर गए
तस्वीर देखकर आपकी यादों मे हम खो गए।।
मिलकर आपसे दिल मे हुई एक छुवन
देखकर आपको खिल गया मेरा मन।
अपने चाँद का हूँ मैं चकोर
चाँदनी रातों में करते हम दोन झिकझोर।।
सच न हुआ सपना कोई नहीं है अपना
सपनों की दुनियाँ मे हम रह गए।
आपकी यादों के सहारे ही खुश हो लिए
तस्वीर देखकर आपकी यादों में हम खो गए।।
लेखकः. किशन नादान
शनिवार, 12 फ़रवरी 2011
किशन नादान
ग़मों के दौर मुझपे आते रहे
जुदा होकर भी मिलने की फ़रियाद करे |
क्या पता कल मैं ही न रहूँ पर खुदा करे
सबके दिल में "किशन" की याद रहे ||
माँ जब तूं चलि जाएगी उस देश को
जहाँ से लौटा है न कभी कोई अपनों के पास |
मासूम ये दिल किशन का फिर भी यही कहेगा
तेरी सूरत न परछाई ही सही एक पल को आ जाती मेरे पास ||
लेखक - किशन नादान
जुदा होकर भी मिलने की फ़रियाद करे |
क्या पता कल मैं ही न रहूँ पर खुदा करे
सबके दिल में "किशन" की याद रहे ||
माँ जब तूं चलि जाएगी उस देश को
जहाँ से लौटा है न कभी कोई अपनों के पास |
मासूम ये दिल किशन का फिर भी यही कहेगा
तेरी सूरत न परछाई ही सही एक पल को आ जाती मेरे पास ||
लेखक - किशन नादान
शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011
ग़ज़ल - किशन नादान
ओ बेखबर मेरे रहगुजर देख ज़रा
दिल ने दस्तक दी न जाने कब किधर |
तेरी मुस्कुराहटों के अफसाने देखे थे हज़ार हमने
गली गली ढूंढता हूँ तुझे कभी इधर कभी उधर ||
क्या ताउम्र कभी कोई पीता है शाकी
गमें दिल तू ही बता क्या तू भी रोता है कभी ?
महबूब की मुस्कुराहटों के बरसात में भीगता रहूँ ताउम्र
सपने संजोये थे "किशन" ने पहली मुलाक़ात में इधर ही कहीं ||
दिल में उम्मीद लिए बैठा था
की आपसे मुलाक़ात होगी |
और खुदा ने चाहा
आज मुलाक़ात हो गयी ||
नफरतों की आग में झुलस घर मेरे घर उनके भी
पर किस किस को बताऊँ सूनी हो गयी आँगन न जाने कितनो की |
कहता है "किशन" अब हर किसी से यही
इंसानियत से बढ़कर दूजा कोई मज़हब नहीं ||
लेखक - किशन नादान
कापी राईट अधिनियम के तहत सर्वाधिकार लेखक के अधीन सुरक्षित |
दिल ने दस्तक दी न जाने कब किधर |
तेरी मुस्कुराहटों के अफसाने देखे थे हज़ार हमने
गली गली ढूंढता हूँ तुझे कभी इधर कभी उधर ||
क्या ताउम्र कभी कोई पीता है शाकी
गमें दिल तू ही बता क्या तू भी रोता है कभी ?
महबूब की मुस्कुराहटों के बरसात में भीगता रहूँ ताउम्र
सपने संजोये थे "किशन" ने पहली मुलाक़ात में इधर ही कहीं ||
दिल में उम्मीद लिए बैठा था
की आपसे मुलाक़ात होगी |
और खुदा ने चाहा
आज मुलाक़ात हो गयी ||
नफरतों की आग में झुलस घर मेरे घर उनके भी
पर किस किस को बताऊँ सूनी हो गयी आँगन न जाने कितनो की |
कहता है "किशन" अब हर किसी से यही
इंसानियत से बढ़कर दूजा कोई मज़हब नहीं ||
लेखक - किशन नादान
कापी राईट अधिनियम के तहत सर्वाधिकार लेखक के अधीन सुरक्षित |
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