सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

ग़ज़ल दिल किसी का दुखाया


ग़ज़ल  दिल किसी का दुखाया

मैंने दिल किसी का दुखाया
मैने दिल किसी का दुखाया।
नादान था बहुत ही नटखट
नादानगी में उनको बहुत सताया।।

जिसने झुलाया था हमें
अपनी बाहों की झुलों मे।
जो बनके घोड़ा बिठाकर पीठ पर अपने
इंसा कोई हँसाया करते थे हमें।।

हर पल हँसाया था जिसने हमें
उसे हमने बहुत रूलाया।
नादानगी में मदहोश किशन
दिल किसी का दुखाया।।

रूठ जाता था कभी तो मा मुझे मनाती
बिठाकर गोद मे हमे खूब हँसती खिलखिलाती
रोता था जब कभी भी सुनाकर लोरियाँ
अपने आँचल तले हमे सुलाती।।

जो हँसाती थी हर पल मुझे
उसको हमने बहुत रूलाया
नादान ही तो था किशन
मैने दिल किसी का दुखाया।।

लेखक- किशन नादान

ग़ज़ल यादों में हम खो गए।


   ग़ज़ल  यादों में हम खो गए।
आप मुझे छोड़कर कहीं चले गए
सच्ची मुहब्बत में नादान कुछ पल रो लिए।
इठलाती.बलखाती आपकी हँसी पैग़ाम..मुहब्बत बन गए
तस्वीर देखकर आपकी यादों में हम खो गए।

आपकी जुदाई में दिन कटता रहा
करता हूँ आपसे मुहब्बत सभी से मैं कहता रहा।
आपकी चाहत में न जाने हम क्या.क्या कर गए
तस्वीर देखकर आपकी यादों मे हम खो गए।।

मिलकर आपसे दिल मे हुई एक छुवन
देखकर आपको खिल गया मेरा मन।
अपने चाँद का हूँ मैं चकोर
चाँदनी रातों में करते हम दोन झिकझोर।।

सच न हुआ सपना कोई नहीं है अपना
सपनों की दुनियाँ मे हम रह गए।
आपकी यादों के सहारे ही खुश हो लिए
तस्वीर देखकर आपकी यादों में हम खो गए।।          
 लेखकः. किशन नादान

शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

किशन नादान

ग़मों के दौर मुझपे आते रहे
जुदा होकर भी मिलने की फ़रियाद करे |
क्या पता कल मैं ही न रहूँ पर खुदा करे
सबके दिल में "किशन" की याद रहे ||

माँ जब तूं चलि जाएगी उस देश को
जहाँ से लौटा है न कभी कोई अपनों के पास |
मासूम ये दिल किशन का फिर भी यही कहेगा
तेरी सूरत न परछाई ही सही एक पल को आ जाती मेरे पास ||

लेखक - किशन नादान

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

ग़ज़ल - किशन नादान

ओ बेखबर मेरे रहगुजर देख ज़रा
दिल ने दस्तक दी  न  जाने कब  किधर |
तेरी मुस्कुराहटों के अफसाने देखे थे हज़ार हमने
गली गली ढूंढता हूँ तुझे कभी  इधर कभी उधर ||

क्या ताउम्र कभी कोई पीता है शाकी
गमें दिल तू ही बता क्या तू भी रोता है कभी ?
महबूब की मुस्कुराहटों के बरसात में भीगता रहूँ ताउम्र
सपने संजोये थे "किशन" ने पहली मुलाक़ात में इधर ही कहीं ||

दिल में उम्मीद लिए बैठा था
की आपसे मुलाक़ात होगी |
और खुदा ने चाहा
आज मुलाक़ात हो गयी ||

नफरतों की आग में झुलस घर  मेरे  घर उनके भी 
पर किस किस को बताऊँ सूनी  हो   गयी आँगन न जाने कितनो की |
कहता है "किशन" अब हर किसी से यही
इंसानियत से बढ़कर दूजा कोई मज़हब नहीं ||

लेखक - किशन नादान
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ग़ज़ल - किशन नादान

क्यों जलाते हो घर किसी और का
इतनी तबाही तनिक तकलीफ ना हुई तेरे सीने में
कभी खुद का घर जलाकर तो देख
कितनी तकलीफ होती है बेघर सी ज़िदगी जीने में।।

एक ही जगह बैठे हम दोनों
मैं भजन गाउॅं तू पढ़ ले नमाज़
मैं भी इंसॉं तू भी इंसॉ इंसानीयत ही अपनी मज़हब
गले मिल जा आओ मिलकर बनाएॅं एक एसा समाज।।

लेखक- किशन नादान

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